Thursday, 17 January 2019

आवेश ....

आवेश ....

एक क्षण
एक पल
आवेश का....
कई शब्द
कुछ नाराज़गी
कटुता....
एक बात से
लगी ठेंस
मन में क्लेश....
कर्त्तव्य
निष्ठा
महज़ शब्द....
औऱ वो करना
पागलपन?....
समर्पण
त्याग
उपासना
जैसे बेमतलब
कर्म
गीता का ज्ञान
किस काम का
इस युग में ??
श्रम
परिश्रम
पात्रता
स्मार्ट फ़ोन
में बंद....
मुझ जैसा
कोई बावला
क्यों
आवेश में
आये आज...
करना हैँ कुछ
की ज़िद्द
फिर भी
सुलगती जाए
आगाज़ का ना पता
ना अंजाम से डर
ना हो भी
कोई साथ...
चल पड़ी
कर्म पथ पर
फिर भी मैं
क्योंकि
मन में हैँ मेरे
ध्यास....

मन विमल

1 comment:

  1. Beautifully penned down the feelings in a poem mam...भावनाओ का कोलाहल जान पडता है

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