बस मैं और तुम....
आज फिर सांझ की गोधूलि में
मै और तुम
मीलों दूर पर करीब
मैं और तुम
रिमझिम बरखा की तरह शब्द
शीतल बूंदो की तरह भाव
मन में उमंगो का सागर
संग बैठने की आस
कुछ बतियाने
बस मैं और तुम
गुज़रे लम्हों को याद किये
मीठी बातों को साथ लिए
चंद वादे भी संग लिए
कुछ रिझाने
बस मैं और तुम
दीप्त आँखों की छोर से
लबों पर रुके बोल से
कभी उजास कभी तम
कुछ समझने
बस मैं और तुम
वक़्त बदलेगा यह
लौटेंगे पल चैन के
खिल उठेंगे मन हमारे फिर
और निखरने
बस मैं और तुम....
मन विमल
मॅम यावर काय लिहावं समजतच नाही.शब्द नाहीत माझ्याकडे
ReplyDeleteमॅम यावर काय लिहावं समजतच नाही.शब्द नाहीत माझ्याकडे
ReplyDeleteरमेश आसबे