Tuesday, 1 December 2020

तुम चले गए....

तुम चले गए....

तुम चले गए
शायद यह सोचकर
ख़त्म हो जाएंगे सारे प्रश्न
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
मिल जाएंगे सारे जवाब
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
सुलझ जाएंगी सारी उलझनें
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
कोई तुम्हें नहीं समझेगा जनाब
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
तुम हो अकेले, बेबस, लाचार
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
दुश्मनी कौन लेगा साहब
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
नाकाबिल हो तुम, अक्षम....
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
कैसे साबित होगा अच्छा बुरा
तुम चले गए
शायद यह सोचकर
तूफ़ान है भयंकर नहीं थमेगा आज
तुम चले गए....
ना रुके, ना सोचा...
पर क्या वक्त रुका?
तुम चले गए
क्या साबित हुुआ?
तुम चले गए....
चला गया,बेजोड़ व्यक्तिमत्व
तुम चले गए
टूटे हज़ारों के सपने और विश्वास
तुम चले गए
गिरा अपनों पर पहाड़
चहकते मुस्कुराते तुम
औरों को धीर देनेवाले...
ना समझ पाए, 
बादल गरजकर बरसते
या बरसकर निकल जाते
पर आसमान रेहता वहीं
फिर उदार होने के लिए
बदलते मौसमों के साथ
फुहारने फिर बहार...
सच...
मौसमों का आना जाना कब रुका...
पर बहुत कुछ रुक गया
तुम्हारे जाने के बाद....

मन विमल 

23 comments:

  1. अप्रतिम 👌👌👌

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  2. Nice and touchable lines ma'am...

    Regards
    Ravi Latelwar

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  3. पर बहुत कुछ रुक गया
    तुम्हारे जाने के बाद....

    बहुत खूब

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  4. पर मेम जाने के बाद भी तो हमारे अपने हमारे साथ ही रहते हैं न सदा।

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  5. 👌👌Heart touching madam ji 👌👌
    🌷🌷🙏🙏🌷🌷

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  6. Bohot badhiya mam....Seems written in someone very near one's remembrance

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