तुमसे ही हैं, तुम्हारे जीवन में प्रकाश....
अक्सर अशांकाओं से घिरा मन
ज़रा कुछ हुआ की थम जाता मन
कभी शब्द कर जाते खिन्न
या बर्ताव किसी का भिन्न
कभी मन का कोई वहम
या दिल का कोई भरम
क्षण मात्र में कर देते तहस नहस
हो जाते स्वप्न उध्वस्त
मन गिर जाता गहरी खाई
तभी आवाज़ निकलकर आई
सुनो बंधु, भाई
क्यों तज दी तुमने चतुराई
सुख दुख हैं निर्भर तुमपर
ना किसी के शब्द ना बर्ताव पर
असंभव हैं सब कुछ
बिन तुम्हारी अनुमति
सुख दुख पीड़ा अपमान
आधीन हैं तुम्हारी सहमति
चूक सुधारो अपनी
बात बनाओ अपनी
राह सवारों अपनी
ध्यान लगाओ अपनी
निंदा करो ना हो उदास
तुमसे ही हैं, तुम्हारे जीवन में प्रकाश....
मन विमल
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Mast mam
ReplyDeleteMast mam
ReplyDelete🙏
DeleteVery true, apt actually this is the whole truth.
ReplyDeleteसगळं ग्राम मॅम
ReplyDeleteरमेश आसबे
सगळं खरे आहे मॅम.
ReplyDeleteरमेश आसबे
सगळं खरे आहे मॅम
ReplyDeleteरमेश आसबे
खूपच छान कविता आहे मॅडम, आपण एवढे व्यस्त असताना आपली आवड जपता खरच ही एक प्रेरणा आहे आमच्यासाठी
ReplyDeleteMasta Maam
ReplyDeleteNice words. Fact.
ReplyDeleteInspiring mam
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