ज्योत जीवन की...
आँखों की छोर में रुकी दो बूँदें
बहने को तरस रही बस दो बूँदें
निकली तो वैसे थी हालत पे मेरे
कुछ बेबस और हताश रेहमत को तेरे
घिर आये जैसे हो बादल घनेरे
कालिख रात की जैसे मुझको हो घेरे
सूझता भी कैसे कुछ औऱ उस मन को
लिपटा जो सिर्फ खुदगर्ज़ी से तन हो
छन से हुआ फिर सच्चाई से सामना
दिखी उन्हीं आँखों को जीवन की यातना
बुजुर्ग थे कुछ उनमे कुछ भिकारी
महिलाएं थी कुछ पीड़ित बेचारी
अनाथ बच्चे भी थे औऱ किशोर अपराधी
अपनों से औऱ अपने घरों से मीलों दूर
गुज़ार रहे ज़िन्दगी होकर के मजबूर
लम्बी साँसों के बीच तनिक रुक गई फिर मैं
अंतरात्मा को अपने टटोलने लगी फिर मैं
नसीब से वो औऱ मैं खयालोँ से मजबूर
सराहती कैसे फिर मिला मुझे जो भरपूर
पल भर में हुआ बयान सत्य जीवन का
आँसूओं के बूंदों को बनाओ मोती
औऱ जला दो किसीके जीवन की ज्योति...
मन विमल
'Naseeb se wo aur main khayalon se majboor/ sqrahti kaise fir jo mila mujhe bharpoor' bahut khoob kaha hai! Jana, aansuon ke boondo ko moti banan hee hoga kyunki bahuton ke Jeevan mein aapko jot jalana hee hoga....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया... आपके आशीर्वाचन मेरा हौसला बढ़ाते हैँ... हमेशा...
DeleteWhat a poem! The words. The expressions. The depth. The sensitivity. Fantastic literary piece
ReplyDeleteFrom you this means a lot to me...Thank you...
Delete