दिल मांगे मोर...
शायद इसलिए दिल मांगे मोर
सुबह शाम का ये ज़ोर शोर
मजबूरी का ये कैसा दौर
लबों पर चुप्पी क़ी बाँधी डोर
और अंधेर भी कितना घोर
फिर भी चाँद का जैसे चकोर
संभल जाता दिल का पोर पोर
यह सोचकर क़ी शायद होगी भोर
और खिलेगी खुशियाँ चारों ओर
जीवन के चक्र पर करो गौर
ऊपर नीचे तो नीयती का कोर...
ऊपर नीचे तो नीयती का कोर...
मन विमल...
Seems straight from the heart. Lovely
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