Saturday, 3 August 2024

उम्मीदों की दुआ...

उम्मीदों की दुआ...

खाने में थोड़ा नमक ज़्यादा,
कहीं मेरे अश्क तो नहीं।
दिल मेरा क्यों टूटा,
कहीं कोई रश्क तो नहीं।
बड़ी-बड़ी बातें कहाँ पल्ले पड़तीं,
छोटी बातें भी क्यों अब बिगड़ने लगीं।
टेढ़े मेढ़े रास्तों से हम सदा से वाक़िफ़,
पर गलियाँ घर की क्यों उलझने लगीं।
सपनों की दुनिया अब हो गई और दूर,
हक़ीक़त के तमाशों से दिल बेनूर होने लगीI
जज़्बातों का सैलाब भले उभरा हो मन में
दिल तो पत्थरों सा मौन ही धरने लगी I    

शिकायत हैं किसी से न अब कोई शिकवा
सुनहरें यादों के दौर से दिल गुज़रने लगीI
अब भी सोचते हैं बीते लम्हे लौटेंगे फिर
उम्मीदों की दुआएं दिल में सुलगती रही...

मन विमल 

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