अंधेर गलियों में दीप जलाओ...
नर रूप धारण, कुछ दानवी मन,
मानवता से दूर, अज्ञानी
अंधकार में खोये , भूले स्वर्ग
त्यागकर ममत्व प्यार करुणा
बढ़ रहे वे मानव, विनाश की ओर
न समझते दर्द, न करते ध्यान.
मचा रहे कैसा विकोप अपार
क्यों हो रहे वे मानव क्रूर, मजबूर?
जगाएं अंतर्मन, खोजें नूर.
छोड़ अविचार बदलले विचार
करें गर दूर मन का अंधकार
मानवता हैँ करुणा का भंडार
साथ मिलकर, बन जाए बहार ,
दिल में प्यार जगाकर तो देखे
खून खराबा रोककर तो देखे
किसीके आँसू पोछकर तो देखे
तनिक रुक सोचकर तो देखे
नराधम नहीं नर हो तुम मानव
इस लिए खून की नदियाँ ना बहाओ
इंसान हो तुम बस यह जानो
मन में प्यार की ज्योत जगाओ
बागबान बनो फूल खिलाओ
अंधेर गलियों में दीप जलाओ
प्यार की इत्र और रौशनी फैलाओ...
मन विमल
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उपरोक्त कविता एक सुंदर संदेश देती है जो मानवता, प्रेम और करुणा पर आधारित है। यह हमें याद दिलाती है कि हम मनुष्य हैं, और हमें अपने भीतर की इंसानियत को पहचानना चाहिए।
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