जब मैं चली जाऊँ,
मेरे बारे में कुछ न कहना,
जो कह न सके मेरे जीते जी,
मेरे जाने पर क्यों कहना?
न कोई बात का ज़िक्र करना,
न कहना कि मैं अच्छी थी,
और ये भी नहीं कि
मैं कितनी प्यारी थी।
जब मैं चली जाऊँ,
मेरी बातों को याद न करना,
न कहना, "वो यूँ कहती थी,"
न कहना, "वो यूँ हँसती थी।"
बस चुपके से विदा कर देना,
ना सजाना मुझे फूलों से,
ना सवारना इत्र की खुशबू से,
ना लगाना मेरी तस्वीर को,
और न बहाना आँसू बिन बातों पर।
श्राद्ध की यदि बात आए,
कुछ दे आना उन बच्चों को,
जो अनाथ हैं, अकेले हैं,
या उन औरतों को,
जिन्हे समाज में ठुकराया हो
मेरे जीते जी जो न कह सके,
शब्द वो मेरे गुजरने पर न कहना,
बस शांति से छोड़ देना मुझे,
मेरी एक ख्वाइश तो पूरी करना...
मन विमल
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मर्मभेदी कविता,
ReplyDeleteशतशः नमन.
🙏🙏🙏